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अपन गामक जाड़

अपन गामक जाड़... भोरहरबाक अन्हार, हवा में गमकैत सिंहार, और भगवती के आगाँ राखल धूमन। ठरल पोखरिक पानि में लाल कमलक फूल, ओहि पर गबैत उड़ैत कारी भमरा सब। पोखरिक महार पर बड़का आमक गाछी, तहि में सऽ जारैन बिछ कऽ लऽ जैत अछि खबासिन। अंगना में नबकनिया चुल्हा पजारने, धुआँ सऽ अंइखो हुनकर सिंदुर सन लाल भेल! बुढ़ा पंडीजी के चूड़ा-दही-गुड़क जलपान, तकर बाद खाइ के छैन्ह बगिया और दू खिल्ली पान। इम्हर चिल्का सब मुरलाइ लऽ बताह भेल। भरि अंगना दौड़-दौड़ भोरे सऽ अनघोल कैल। दुपहरिया के मंद पड़ल रौद, तहि में निखरल गेंदाक रूप। कनेक कनकनी... परबा-पौरकी सब सेहो बाहर आबि तपैत अछि धूप। भात-दैल-तरकारी संग खम्हाउर-तिलकोरक भोज, संग में अछि खटमिट्ठी-पापड़ और अचार, उपर सऽ मोट छाल्ही बला दही और सकरौरी के सचार। खा-पिब कऽ घरबारिक पसरल छथि खाट पर, करिया कुकुर मालिकक लग सुतल नीचा बाट पर! ओलती में बैस दुनु बुढ़ी जाँत पिसैत छथि, लगनी गबैत छथि, आ बीच-बीच में कनफुसकी में मल्हारपुरवाली के दुसैत छथि। साँझक ओस आ शीतलहरीक बयार, ओसारा पर टाँगल ओहार, मैंयाँ के लाइ, तिलबा, तिलकुट, मरुआ-चाउरक रोटी, माटिक चुल्हा प...